वो हमसे पूछते हैं हाल-ए-ज़िन्दगी क्या है,
और हम उनसे पूछ बैठे ज़िन्दगी क्या है|
शीशा-ए-दिल है यहाँ, खून-ए-जिगर भी है यहाँ,
खेलने वाले बता तेरी आरजू क्या है|
हमने बाजों को बनाया है मसीहा अपना,
फंस गए पंजो में फ़िर बाज़ की गलती क्या है|
जिस्म बर्दाश्त करना सीख गया काला धुआं,
रूह भी सीख ले ये हुनर फ़िर मुश्किल क्या है|
ज़िन्दगी जा रही है किस तरफ़ ख़बर ही नही,
ख़ुद से कोई पूछ ले ज़रा, 'मेरी मंजिल क्या है?' |
1 comment:
वाह, इतना ढेर सारा दर्द कहां से लाते हैं प्रभु, दिल में तो दर्द समझ में आता है लेकिन उसका एक-एक कतरा यूं सामने उकेर देना बहुत बड़ी कला है,जनाब।
आपका हर एक अल्फाज हर किसी की जिंदगी का दर्द बयां करता है।
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