वो हमसे पूछते हैं हाल-ए-ज़िन्दगी क्या है,
और हम उनसे पूछ बैठे ज़िन्दगी क्या है|
शीशा-ए-दिल है यहाँ, खून-ए-जिगर भी है यहाँ,
खेलने वाले बता तेरी आरजू क्या है|
हमने बाजों को बनाया है मसीहा अपना,
फंस गए पंजो में फ़िर बाज़ की गलती क्या है|
जिस्म बर्दाश्त करना सीख गया काला धुआं,
रूह भी सीख ले ये हुनर फ़िर मुश्किल क्या है|
ज़िन्दगी जा रही है किस तरफ़ ख़बर ही नही,
ख़ुद से कोई पूछ ले ज़रा, 'मेरी मंजिल क्या है?' |