Thursday, August 20, 2009

भारत-पर्व

जन गण मन उपवन हो जाये ,
जब जब शुभ स्वातंत्र्य मनाये |
हृदय रंग जीवन तरंग भर ,
आओ सब भारत बन जाये |
गर्व हमें हम इसी धरा के ,
संत रचे जहाँ वेद ऋचाएं |
सच्चे बालक बन माता के ,
आओ हम सब कष्ट मिटायें |
जाति धर्म के भेद भुलाकर ,
सब मानववादी बन जायें |
एक गगन है, एक धरा है ,
एक भाव और प्रेम बढाएं |
निज मानव जीवन सार्थक हो ,
जब सेवा में इसे लगायें |
तब ही राष्ट्र सर्वोन्नत होगा ,
जब सेवा को धर्म बनाएं |
देश हमारा संगम ऐसा ,
संस्कृतियों की मिले धाराएं |
भाव पुष्प और गंध प्रेम के ,
जिसकी मिटटी में बस जायें ,
अखिल विश्व में अद्वितीय भारत ,
हम भारतवासी कहलायें |



Sunday, January 18, 2009

ज़िन्दगी क्या है...


वो हमसे पूछते हैं हाल-ए-ज़िन्दगी क्या है, 
और हम उनसे पूछ बैठे ज़िन्दगी क्या है|  

शीशा-ए-दिल है यहाँ, खून-ए-जिगर भी है यहाँ, 
खेलने वाले बता तेरी आरजू क्या है|  

हमने बाजों को बनाया है मसीहा अपना, 
फंस गए पंजो में फ़िर बाज़ की गलती क्या है|  

जिस्म बर्दाश्त करना सीख गया काला धुआं, 
रूह भी सीख ले ये हुनर फ़िर मुश्किल क्या है|

ज़िन्दगी जा रही है किस तरफ़ ख़बर ही नही, 
ख़ुद से कोई पूछ ले ज़रा, 'मेरी मंजिल क्या है?' |