जन गण मन उपवन हो जाये ,
जब जब शुभ स्वातंत्र्य मनाये |
हृदय रंग जीवन तरंग भर ,
आओ सब भारत बन जाये |
गर्व हमें हम इसी धरा के ,
संत रचे जहाँ वेद ऋचाएं |
सच्चे बालक बन माता के ,
आओ हम सब कष्ट मिटायें |
जाति धर्म के भेद भुलाकर ,
सब मानववादी बन जायें |
एक गगन है, एक धरा है ,
एक भाव और प्रेम बढाएं |
निज मानव जीवन सार्थक हो ,
जब सेवा में इसे लगायें |
तब ही राष्ट्र सर्वोन्नत होगा ,
जब सेवा को धर्म बनाएं |
देश हमारा संगम ऐसा ,
संस्कृतियों की मिले धाराएं |
भाव पुष्प और गंध प्रेम के ,
जिसकी मिटटी में बस जायें ,
अखिल विश्व में अद्वितीय भारत ,
हम भारतवासी कहलायें |